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Monday, 29 May 2017

“मैं हिंदुओं और मुसलमानों को बर्दाश्त कर सकता हूं, लेकिन चोटी वालों और दाढ़ी वालों को नहीं

“मैं हिंदुओं और मुसलमानों को बर्दाश्त कर सकता हूं, लेकिन चोटी वालों और दाढ़ी वालों को नहीं. चोटी हिंदुत्व नहीं है. दाढ़ी इस्लाम नहीं है. चोटी पंडित की निशानी है. दाढ़ी मुल्ला की पहचान है. ये जो एक दूसरे के बाल नोचे जा रहे हैं, ये उन कुछ बालों की मेहरबानी है, जो इन चोटियों और दाढ़ियों में लगे हैं. ये जो लड़ाई है वो पंडित और मुल्ला के बीच की है. हिंदू और मुसलमान के बीच की नहीं. किसी पैगंबर ने नहीं कहा कि मैं सिर्फ मुसलमान के लिए आया हूं, या हिंदू के लिए या ईसाई के लिए आया हूं. उन्होंने कहा, “मैं सारी मानवता के लिए आया हूं, उजाले की तरह.” लेकिन कृष्ण के भक्त कहते हैं, कृष्ण हिंदुओं के हैं. मुहम्मद के अनुयायी बताते हैं, मुहम्मद सिर्फ मुसलमानों के लिए हैं. इसी तरह ईसा मसीह पर ईसाई हक़ जमाते हैं. कृष्ण-मुहम्मद-ईसा मसीह को राष्ट्रीय संपत्ति बना दिया है. यही सब समस्याओं की जड़ है. लोग उजाले के लिए नहीं शोर मचा रहे, बल्कि मालिकाना हक़ पर लड़ रहे हैं.”
         _ काजी नजरुल इस्लाम

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